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________________ प.पू. हेमचन्द्र विजय जी गणिवर्य महाराज आदि विशाल साधु-साध्वी समुदाय की पावन निश्रा में हुई थी। इस समवसरण जिनालय में प्रवेश करते ही सामने समवसरण की सीढियाँ चढकर ऊपर जाते ही मध्य में अशोक वृक्ष के नीचे चतुर्मुखजी प्रभुजी के बिंबों को निहारकर हृदय पुलकित हो जाता है। इस समवसरण के सामने रंगमंडप में अतीत चौबीसी के इस तीर्थकर सहित श्यामवर्णी श्री नेमिनाथ परमात्मा तथा उनके सामने अनागत चौबीसी के चौबीस तीर्थंकर सहित पीतवर्णी श्री पद्मनाभ परमात्मा की नयनरम्य प्रतिमायें बिराजमान हैं। अन्य रंगमंडप में जीवित स्वामी श्री नेमिनाथ भगवान तथा सिद्धात्मा श्री रहनेमि की प्रतिमायें, विशिष्ट कलाकृति युक्त काष्ठ का समवसरण जिनालय तथा प्रत्येक रंगमंडप में श्री नेमिनाथ भगवान के 66 गणधर भगवतों की प्रतिमायें स्थापित की गयी हैं। इसके सिवाय जिनालय में प्रवेश करते ही रंगमंडप में बायीं ओर शासन अधिष्ठायक देव श्री गोमेध यक्ष तथा दायीं ओर श्री अंबिका देवी की प्रतिमायें बिराजमान हैं। अन्य रंगमंडप में प.पू.आ. हिमांशुसूरि महाराज के ज्येष्ठ पूज्यों की प्रतिकृति तथा चरण पादुका बिराजमान है। समवसरण के पीछे नीचे गुफा में श्री नेमिनाथ परमात्मा की अत्यन्त मनोहर प्रतिमा (21 इंच) बिराजमान है। प.पू.आ. हिमांशुसूरि महाराज साहेब द्वारा प्रेरित 'श्री सहसावन कल्याणकभूमि तीर्थोद्धार समिति' जूनागढ द्वारा समवसरण मंदिर का निर्माण किया गया है। यहाँ यात्री विश्राम, भोजन, भाता, धर्मशाला आदि की पूर्ण व्यवस्था है। इस समवसरण जिनालय से बाहर निकलकर सीढियाँ उतरते ही दायीं ओर इस जिनालय के प्रेरणादाता प.पू.आ. हिमांशुसूरि महाराज साहेब की अंतिम संस्कार की भूमि आती है। जहाँ आचार्य श्री की प्रतिमा और गिरनार तीर्थ
SR No.023336
Book TitleTritirthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRina Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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