SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 818
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७४ जैनधर्मसिंधु. पी चंदन कुंकुम कर्पूर कस्तूरी आदि सुगंध हाथमें लेके ॥ ॐ अहलं । इदं गंधं महामोदं, वृहणं प्रीणनं सदा ॥ जिनार्चने च सत्कर्म, संसिहयै जायतां मम ॥१॥ __ यह मंत्र पढके विविध गंध जिनप्रतिमाको विले पन करे. ॥ पीछे पुष्पपत्रादि हाथमें लेके ॥ ऊँ अँह दं । नानावण महामोदं, सर्वत्रिदशवबन्नं जिनार्चनेत्र संसिद्ध्यै, पुष्पं नवतु मे सदा ॥१॥ यह मंत्र पढके जिनप्रतिमाके ऊपर सुगंधमय विविध वर्णके पुष्प चढावे.॥ उँ त।प्रीणनं निर्मलं बल्यं, मांगल्यं सर्वसिद्धिदं॥ जीवनं कार्यसं सिध्यै, यान्मे जिनपूजने ॥१॥ ___ यह मंत्र पढके जिनप्रतिमाके ऊपर अदत आरोपण करे. ॥ सुपारी प्रमुख फल हाथमें लेके जायफलं स्वर्गफलं, पुण्यमोक्षफलं फलं ॥ दद्याजिनार्चनेत्रैव, जिनपादारसंस्थितम् ॥ १॥ ___ यह मंत्र पढके जिनपादाग्रे फल ढोवे. ॥ पीछे धूप लेके ॥ ॐ अँह रं। श्रीखंमागरुकस्तूरी, उमनिर्याससंनवः ॥ प्रीणनः सर्व देवानां, धूपोस्तु जिनपूजने ॥१॥ यह पढके अग्निमें धूपदेप करे. ॥ पीले फूल लेके। “॥ ॐ अँह जगवन्नयोहजयो जलगंधपुष्पादत फलधूपदीपैः संप्रदानमस्तु ॐ पुण्याहं प्रीयंतां जग
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy