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________________ प्रथमपरिछेद. ४७ बुद्धि, लक्ष्मी, मेधा, विद्या साधन, प्रवेश निवश नेषु ॥ सुग्टहीतनामानो जयंतु ते जिनेंद्राः ॥ ॐ रोहिणी, प्रकृति, वज्ञांशृंखला, वज्जांकुशी, अ प्रतिचक्रा पुरुषदत्ता, काली, महाकाली, गोरी, गांधारी, सर्वास्त्रा, महाज्वाला, मानवी, वैरुट्या, अच्छूप्ता, मानसी, महामानसी, एता षोमश विद्यादेव्यो रकंतु वो नित्यं स्वाहा ॥ ॐ आ चार्योपाध्यायप्रभृति चातुर्वर्ण्यस्य ॥ श्रीश्रमणसं घस्य ॥ शांतिर्भवतु ॐ तुष्टिर्भवतु पुष्टिर्भवतु ॥ ॐ ग्रहाचं सूर्यागारकबुधबृहस्पतिशुक्रशनैश्च रराहु केतुसहिताः सलोकपालाः सोमयमवरुण कुबेर वासवादित्यस्कंद विनायकोपेताः येचा न्येपि ग्रामनगरदेवदेवतादयस्तेसर्वे प्रीयंतांप्री यंताम् ॥ क्षीणकोशकोष्ठागारानर पतयश्च जवंतु स्वाहा ॥ ॐ पुत्र, मित्र, चाट, कलत्र, सुहृद् स्वजन, संबंधि, बंधुवर्ग, सदिताः नित्यं चामोदप्रमोदकारिणो भवंतु प्रस्मिँश्च भूमंडलायतन निवासीनां साधु साध्वी श्रावक श्राविकाणां रोगोपसर्ग व्याधि दुःख पुर्निददौ मनस्योपशमनाय शांतिर्भवतु ॥ ॐ तुष्टि पु
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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