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________________ प्रथमपरिच्छेद. लिणियादिं, सकल कमलदल लोणिया दिं ॥ २६ ॥ दीवयं ॥ पीए निरंतर थणजरविण मिय गायलयादिं, मणि कंचण पसिढिलमेद ल सोदि सोणितमादिं ॥ वरखिंखिणि नेजर सतिलय वलय विनूस पियादिं, रइकर चर मणोदर सुंदर दंसािदिं ॥ २७ ॥ चित्तक रा ॥ देवसुंदरी हिं पाय वंदियादिं, वंदिय ज स्स ते सुविक्कमाकमा अप्पणी निलाएदि मंग गोडुप्पगारएहिं केदिं केदिं वि वंगतिल य पत्तलेद नाम दिं चिल्लएहिं संगयं गयाहिं नत्ति सन्निवि वंदणागयादिं हुंति ते वंदिया पुणो पुणो ॥ २८ ॥ नाराय ॥ तमदं जिणचंदं, अजिखं जिप्रमोदं ॥ धुप्रसव किलेसं पयर्ज पण मामि ॥ २९ ॥ नंदिप्रयं ॥ च्प्रवंदिप्रस्सा रिसीगण देवगणेहिं, तो देव वहूदिं पय पण मिस्सा | जस्स जगुत्तमसासण्यस्सा, नत्ति वसागयपिंडियादि ॥ देव वरवरसाव हुआ हिं, सुरवर रइगुण पंडियाहिं ॥ ३० ॥ नासुर यं ॥ वंस सह तंति तालमेलए तिजकरा निराम सद्द मीसएक अ, सुइसमाण सुस ४३
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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