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________________ ४५ जैनधर्मसिंधु. मंसियं ॥ देवकोमिसयसंथुअं, समणसंघपरि वंदियं ॥२०॥सुमुदं ॥ अन्नयं अणहं अरयं अरुयं अजिअं अजिअं पय पणमे ॥२१॥ विअविलसिअं ॥ आगयावर विमाण, दिव कणग रद तुरय पदकर सरहिं हुलिअं॥ ससंनमो रयण कुनिअ, बुखि चल कुंभ लं गय तिरीड सोदंत मनलिमाला ॥ २२॥ वे ज सुरसंघा सासुर संघा वेर विनत्ता न त्ति सुजुत्ता, आयर नूसिअ संनमपिंमिश्र सुहु सुविह्मिअ सबबलोघा ॥ उत्तम कंचण रयण प रूवित्र, नासुर नूसण नासुरिअंगा ॥गाय स मोणय नत्तिवसा गय, पंजलिपेसियसीस पणा मा॥२३॥ रयणमाला ॥ वंदिळण थोऊण तो जिणं, तिगुणमेवय पुणो पयादिणं॥ पणमिक णय जिणं सुरासुरा, पमुश्ा सनवणाईतो ग या॥७॥खित्तयं॥तं महामणि महंपिपंजलि. राग दोस नय मोद वजिअं ॥ देवदाणव नरिं द वंदिरं, संतिमुत्तम मदातवं नमे ॥२५॥ खित्तयं ॥ अंबररंतरविप्रारणियादिं, ललिभ हंस वहुगामिणियादिं ॥ पीण सोणत्यण सा
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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