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________________ अष्ठमपरिबेद. ए "करेह” पीने श्रावक-सम्मत्तातिगस्सथिरीकर एवं करेमि काउसग्गं अन्नक-सागरवरगंजीरातक कायोत्सर्ग करे. पारके संपूर्ण लोगस्स कहे। पीछे चारथुश्वर्जित शकस्तवसे चैत्यवंदन करे. । पीने श्रावक, गुरुको तीन प्रदक्षिणा देवे. पी आसन ऊपर बैग हुआ गुरु, श्रावकको आगे बिगके निय म देवे. ॥ नियमयुक्तिर्यथा ॥ ___ गुलर, प्लक्षण, काकोडुबरि, वट और पिप्पल, ये पांच जातिके फल ५. मांस, मदिरा, माखण और मधु, ये चार विकृति ४-एवं ए-अज्ञात फल १० , अशात पुष्प १९, हिम (बरफ) १२, विष १३, करहे (श्रोले-गडे ) १४, सर्वसचित्तमही १५, रात्रिनोजन १६, घोलवमा-काचे दूध दहि बाबमें गेरा हुश्रा विदल १७, बरंगण १७, पंपोटा-खसख सका दोमा ९ए, सिंघाडे २०, वायंगण २१, और कायंबाणि २२, येह बावीस अव्य श्रावकोंको जद ण करने योग्य नहीं है. अन्य प्रकारसे २२ अनदय यह हे की पांच जातिके जंबरादि फल ५ चार महा विगए, हिम १०, विष ११, करह १२, सर्व मृत्तिका १३, रात्रि जोजन १४, बहुबीज वाले फल १५, अनं त काय १६, अचार १७, घोलवमा १७, वेशंगण १ए, अज्ञात फल फूल २०,तुब फलस,चनितरस १२ ऐसें नियम देके यह गाथा उच्चारण करावे ॥
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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