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________________ अष्टमपरिछेद. यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया ॥ सा क्षेत्रदेवता नित्यं, नूयान्नः सुखदायिनी ॥१॥ ___“॥ जुवनदेवताराधनाथ करेमि काउसग्गं अन्न व उससिएणं-यावत्-अप्पाणं वोसिरामि ॥" ___ कायोत्सर्गमें एक नमस्कार चिंतन करे, पीले 'नमोअरिहताणं' कहके पारे, पारके ' नमोर्हत् कह के स्तुति पढे.॥ "ज्ञानादिगुणयुक्तानां, नित्यं स्वाध्यायसंयमरतानां ॥ विदधातु जुवनदेवी, शिवं सदा सर्वसाधूनाम् ॥१॥" " शासनदेवताराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्न छ” कायोत्सर्गमें एक नमस्कार चिंतन करे, पीले 'नमोअरिहंताणं' कहके पारे, पारके 'नमोर्हसि का' कहके स्तुति पढे.. " या पाति शासने जैन, सद्यः प्रत्यहनाशिनी ॥ सानिप्रेतसमृद्ध्यर्थं, नूयाच्छासनदेवता ॥ १॥" ___“समस्तवैयावृत्त्यकराराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नष्ठा ” कायोत्सर्गमें एक नमस्कार चिंतन करे, पीछे 'नमो अरिहंताणं' कहके पारे, पारके 'नमो हसिका' कहके स्तुति पढे. “ ये ये जिनवचनरता वैयावृत्त्योद्यताश्च ये नित्यम् ॥ ते सर्वे शांतिकरा जवंतु सर्वाणुयदाद्याः॥१॥" 'नमो अरिहनाणं' कहके बैठके “ नमुथ्थुणं० ९१
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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