SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 754
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २० जैनधर्मसिंधु. केहे 'नमोर्हसिकाचार्योपाध्यायसर्वसाधुन्यः' यह कहके स्तुति पढे । सोलिखतेहें। ___ “श्रीमते शांतिनाथाय, नमः शांतिविधायिने ॥ त्रैलोक्यस्यामराधीश, मुकुटाज्यर्चितांघ्रये॥१॥"अथवा "शांतिः शांतिकरः, श्रीमान् शांतिं दिशतु मे गुरुः॥ शांतिरेव सदा तेषां, येषां शांतिदे गृहे ॥१॥” पीले “॥ श्रुतदेवताराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्न उससिएणंयावत्अप्पाणं वो सिरामि॥" कायोत्सर्गमें एक नवकार चिंतन करे. पीने 'नमो अरिहंताणं' कहके पारे, पारके - नमोर्हत् कहके स्तुति ॥ यथा ॥ '॥ सुश्रदेवया नगवई, नाणावरणीयकम्मसंघायं ॥, तेसिं खवउ सययं, जेसिं सुयसारे जत्ती॥१॥” अथवा "श्वसितसुर जिगंधालब्धनूंगी कुरंगं, मुखशशि नमजस्त्रं बित्रति या बिनर्ति ॥ विकचकमलमुच्चैः सास्त्वचिंत्यप्रनावा, सकलसुखविधात्री प्राणजाजां श्रुतांगी ॥१॥” "क्षेत्रदेवताराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नल उससिएणंयावताप्पाणं वोसिरामि ॥” कायोत्सर्गमें एक नमस्कार चिंतन करे, पीने 'नमो अरिहंताणं' कहके पारे, पारके 'नमोई करके थई पढे ॥
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy