SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 749
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्टमपरिजेद. ७१५ तावाला जानना, ११-१२-१३-१४-१५-१६-१७१०-१५-२० शेष गुणवालेको मध्यमयोग्यतावाला जानना. इन श्कीस गुणोंका विस्तारसहित वर्णन अज्ञानतिमिरनास्करके द्वितीय खमके ४६ पृष्ठसें लेके ७३ पृष्ठपर्यंत उहांसें देख लेना. योगशास्त्रमे श्रीहेचंडाचार्यनेंनी एसाहि कहाहै की. न्यायसें धन उपार्जन करनेवाला; शिष्टाचारकी प्रशंसा करनेवाला, जिनका कुलशील अपने समान होवे, ऐसे अन्य गोत्रवांलेके साथ विवाह किया है जिसने; पापसें मरनेवाला, प्रसिद्ध देशाचारको कर नेवाला, अर्थात् देशाचारका उलंघन नही करनेवाला, किसी जगे जी अवर्णवाद नहीं बोलनेवाला, राजा दिकोंमें विशेषसें अवर्णवाद वर्जनेवाला; । अतिप्र कट, वा अति गुप्त स्थानमें नही रहनेवाला, अछा पामोसी होवे तिस घरमें रहनेवाला, जिस मकानके अनेक आनेजानेके रस्ते होवें तिस घरको वर्जने वाला; । सदाचारोंसें संग करनेवाला, मातापिताकी पूजा नक्ति करनेवाला, उपवसंयुक्त स्थानको त्यागनेवाला, जगत्में जो कर्म निंदनीक होवे तिसमें प्रवृत्त नही होनेवाला;। अपनी आमदनीअनुसार खर्च करनेवाला, अपने धनके अनुसार वेष रखने वाला; बुझिके आठ गुणोंसें संयुक्त निरंतर धर्मों पदेश श्रवण करनेवाला; अजीर्णमें जोजनका त्यागी
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy