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________________ श्रष्टमपरिच्छेद. ६५७ कच्चे विना गरम करे गोरस दूध दही बाबके साथ द्विदल अन्न, जिसपर नीली फूली खाजावे सो अन्न, जीवोत्पत्तिसंयुक्त संधान अर्थात् तीन दिन उपरां तका आचार, रात्रिजोजन, शूद्रका अन्न, देवके आगे चढा नैवेद्य इन पूर्वोक्त वस्तुयोंको मरणांतमें जी न खाना । संतानोत्पत्तिकेवास्ते गृहवासमें स्त्रीसें संजोग करना न तु कामासक्त होके । चारों श्रार्य जैन वेद विधिसें पढने खेती, पशुपालपणा और सेवा वृत्ति (नौकरी) येह नही करने । शुचिमान् होके सत्य वचन बोलना, प्राणिकी रक्षा करनी, अन्य स्त्री और अन्य धन येह वर्जने, कषाय विषयको त्यागने, प्रायः क्षत्रिय और वैश्योंके घरमें तेरे जो जन न करना, श्रईत् ब्राह्मणों के घरमें जोजन कर ना तुमको योग्य है । अपनी ज्ञातिका जो मिथ्या त्ववासित होवे, और मांसाहारी होवे तिसके घर में जी जोजन नही करणा । प्रायः यापही पकाके जोजन करना । कच्चे अन्नका जी दान नीचोंके हाथ का न ग्रहण करणा, नगर में भ्रमण करतां किसीका जीप्रायः स्पर्श न करना । उपवीत, स्वर्णमुद्रा और अंतरीय, इनको त्याग न करने. कारणांतरको वर्जके शिरके ऊपर उष्णीष (पगमी ) धारण न करना । प्रायः सर्व मनुष्योंको धर्मोपदेश देना, व्रतारोपको वर्जके निर्बंथ गुरुकी आज्ञासें पंचदश १५ संस्कार ८३
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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