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________________ अष्टमपरिजेद. ६१ कपद्मादसूत्रकरे। हंसवाहने। श्वेततवर्णे। मम सन्नि. हिता लव २ स्वाहा ॥” तीनवार पढके सन्निहित करे ॥ पीछे ॥ “ ॥ ही नमो नगवति । ब्रह्माणि । वीणा पुस्तकपद्मादसूत्रकरे । हंसवाहने । श्वेतवर्णे । श्ह तिष्ठ स्वाहा ॥” इति । तीनवार पढके स्थापन करे ॥ पीने ॥ ___“॥ ॐ नमो जगवति । ब्रह्माणि । वीणा पुस्तकपद्माक्षसूत्रकरे । हंसवाहने । श्वेतवर्णे । गंधं गृह्ण २ वाहा ॥” चंदनादि गंध चढावे ॥ “ॐ ही नमो नगवति । ब्रह्माणि । वीणापुस्त कपद्मादसूत्रकरे । हंसवाहने । श्वेतवर्णे । पुष्पं गृह २ खादा ॥" इसीतरे मंत्रपूर्वक। "धूपं गृह्ण ।' दीपं गृह्ण ।' 'अदतान् गृह ।' 'नैवेद्यं गृह्ण २ वाहा ॥” ___ ऐसे एकएकवार मंत्रपाठपूर्वक इन पूर्वोक्त गंधा दिवस्तुयोंकरके नगवतीको पूजे. ॥ ऐसेंही अन्य सात मातायोंकी पूजा करणी। विशेष मंत्रोंमें है, सो लिखते हैं.॥ “ॐ ही नमो नगवति । माहेश्वरि । शूलपि नाककपालखट्वांगकरे। चंदाललाटे। गजचर्मावृते।
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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