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________________ ६०२ जैनधर्मसिंधु. ( श्रावक विशेष ) जिसका स्वरूप आगे लिखेंगे. इन दोनों में से कोई एक गृहस्थोंको संस्कार करावे. प्रथम गर्भाधान संस्कारका विधि. जब गर्भधारण को पांच मास होवे, तब गर्जाधा नविधि, गृहस्थगुरु जैन ब्राह्मणों ने कराना. गर्जा धान १, पुंसवन २, जन्म ३, नाम ४ और अंत ए, इन पांच संस्कारों में यवश्य कर्मके वास्ते मास दि नादिकोंकी शुद्धि न देखनी । श्रवण, हस्त, पुनर्व सु, मूल, पुष्य, मृगशीर्ष, येह नक्षत्र और रवि, मंगल, बृहस्पति, येह वार पुंसवनादिकमोंमें कहे हैं । ईसवास्ते पांचमे मासमें शुभ तिथि, वार, नक्ष के दिनमें पतिको बलवान् चंद्रादि देखकर, देश विरतिगुरु जिसने स्नान करा है, चोटी बांधी है, उपवीत और उत्तरासंग धारण करा है, श्वेतवस्त्र पहिना है, पंचकक्षा धारण करा है, मस्तक में चंद नका तिलक करा है, सुवर्णमुद्रासहित दक्षिणकर सावित्रीक प्रकोष्ठबद्ध पंचपरमेष्ठि मंत्रोद्दिष्ट पांच ग्रंथियुक्त दर्जसहित कौसुंज सूत्रका कंकण है जिस के, तथा जिसने रात्रिमें ब्रह्मश्चर्य पाला है, जिसने उपवास, श्राचाम्ल, निर्विकृति, एकाशनादि प्रत्या ख्यान करा है, संप्राप्तकरी है याजन्मसें यतिगुरुकी श्राज्ञा जिसने ऐसे पूर्वोक्त विशेषणयुक्त, जैनब्राह्म
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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