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________________ ԱՍԵ जैनधर्मसिंधु. खा, चंकुल, अमुक श्राचार्य, उपाध्याय, स्थवीर, अमुक पंमितके शिष्य (अमुक मुनि) महापारिगव णीया करेमि काउस्सग्गं' अन्नथ कही एक नव कार कहे. पिने तीन वार 'वोसिरे' कहे. पिने श्रावक संस्कार करनेको ले जाय. तत्पश्चात् जीर्ण काचली प्रमुख नांगना. जीर्ण वस्त्र परग्वना. पवित्र अचित्त पाणीसे नूमिशुकि हस्तपाद वस्त्र शुकि कर ना पिले श्रावक पास गोमूत्रादि बंटायके अवले देव वंदाने. तिसकी विधि नीचे प्रमाणे अंतिम देव वंदन विधि. काल करने वाले साधुके एक शिष्य अथवा ल घु पर्यायवाला को शिष्य प्रथम उलटा काजा (छारसे श्रासन तरफ) लेवे. वस्त्रादि पहेरे उलटा. पिजे काजा संबंधी रिश्रावही पमिकमके उलट्य देव वंदन करे सो इस प्रमाणे. प्रथम कहाणकंदकी एक थोश. पिजे एक नवकारका काजस्सग्ग, पिजे अन्नत्थ अरिहंत चे जयवि० जव सग्गनमोहंत जावंति के खमासमण जावंतीचे नमुथ्युणं चैत्यवंदन लोग्गस्स० एक लोगस्सका काउस्सग्ग अन्नब तस्सज इरिथा वही खमा समण देके. श्रविधि आशातना मिठामि पुक्कम कहे. पिडे सीधा काजा लेके इरियावही पडिकमे. पिजे सना समद सर्व साधु साध्वीने आठ
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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