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________________ प्रथमपरिछेद. ॥ २ ॥ कषायतापार्दितजंतुनिर्ति, करोति यो जैनमुखांबुदोजतः ॥ सशुक्रमासोनवष्टि सन्निनो, ददातु तुष्टिं मयि विस्तरो गिराम् ॥३॥ ॥३॥ अथ विशाललोचन ॥ ॥विशाललोचनदलं, प्रोद्यहंताशुकेशरम् ॥ प्रातर्वीर जिनेंस्य, मुखपद्मं पुनातु वः॥१॥ येषामनिषेककर्म कृत्वा, मत्ता हर्षनरात् सुखं सुरेंजाः ॥ तृणमपि गणयंति नैव नाकं, प्रातः संतु शिवाय ते जिनेशः॥२॥ कलंकनिर्मुक्त ममुक्तपूर्णतं, कुतर्कराहुयसनं सदोदयम् ॥ अ पूर्वचं जिनचं नाषितं, दिनागमे नौमि बुधै नमस्कृतम् ॥३॥इति ॥ ३॥ ॥४०॥ अथ सूत्रदेवोत्रदेव स्तुतिः॥ ॥सुअदेवयाए करेमि कानस्सग्गं० ॥ सुअ देवया नगवई, नाणा वरणीअ कम्म संघायं॥ तेसिं खवेन सययं, जेसिं सुअसायरे जत्ती॥२॥ ॥४१॥ अथ खित्तदेवयाए करेमि० ॥ ॥जीसे खित्ते साहू, दंसण नाणेहिं चरण सहिएटिं॥ साहंति मुस्कमग्गं, सा देवी हरज उरिआई॥१॥ ॥शति॥४१॥
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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