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________________ षष्ठमपरिश्छेद. ԱՍ ॥ एकादश गणधरनां नाम, प्रह उठीनें करूं प्र गाम ॥ इंद्रभूति पहेलो ते जाण, अग्निभूति बीजो गुणखा ॥ १ ॥ वायुभूति त्रिजो जग सार, गण धर चोथो व्यक्त उदार ॥ शासनपति सुधर्मा सार, मं मित नामें बहो धार ॥ २ ॥ मौर्यपुत्र ते सातमो जेड़, अकंपित अष्टम गुणगेह ॥ मुनिवरमांहे जे पर धान, अचल चात नवमो ए नाम ॥ ३ ॥ नामथ की होय कोंडी कल्याण, दशमो मेतारज अविरल वाण ॥ एकादशमो. प्रजास कदेवाय, सुखसंपत्ति जस नामें थाय ॥ ४ ॥ गाया वीर तथा गणधार, गुणमणि रयण तथा भंडार ॥ उत्तमविजय गुरुनो शिष्य, रत्नविजय वंदे निशदिस ॥ ५ ॥ इति ॥ अथ गौतमप्रजातिस्तवनं ॥ ॥ राग प्रजाती ॥ मात पृथ्वीसुत प्रात ऊठी नमो गणधर गौतम नाम गेलें ॥ प्रहसमे प्रेमशुं जेह ध्यातां सदा, चढती कला होय वंशवेले ॥ मा० ॥ १ ॥ वसुभूपति नंदन विश्वजन वंदन, डुरित निकंदन नाम जेहनुं ॥ नेद बुझें करी न विजन जे नजे, पूर्ण पोहोचे सहि जाग्य तेनुं ॥ मा॥२॥ सुरमणि जेह चिंतामणि सुरतरु, कामित पूरण काम धेनु ॥ तेह गौतमनुं ध्यान हृदयें धरो, जेहथकी अधिक नहीं माहात्म्य केनुं ॥ मा० ॥ ३ ॥ प्रणव यादें धरी माया बीजें करी, स्वमुखें गौतमनाम
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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