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________________ शष्ठमपरिछेद. ४५७ ॥शष्ठमपरिवेद प्रारंजः॥ ॥ अथ श्रीगौतमाष्टक बंद ॥ ॥ वीर जिणेसर केरो, शिष्य, गौतम नाम जपो निशदीश ॥ जो कीजें गौतमनुं ध्यान, तोघर विल से नवे निधान ॥ १॥ गौतम नामें गिरि वर चडे मनोवांडित हेला संपजे ॥ गौतम नामें नावे रोग, गौतम नामें सर्व संजोग ॥२॥ जे वैरी विरूया वंकडा, तस नामें नावे दुकमा ॥ नूत प्रेत न विमंडे प्राण, ते गौतमनां करुं वखाण ॥३॥ गौतम नामें निर्मल काय, गौतम नामें वाधे श्राय ॥ गौतम जि नशासन शणगार, गौतम नामें जय जयकार ॥४॥ शाल दाल सुरहा घृत गोल, मनोवांबित कापम तंबोल ॥घरसुघरिणी निर्मल चित, गौतम नामें पुत्र विनित ॥५॥ गौतम उदयो अविचल जाण, गौत म नाम जपो जग जाण ॥ महोटा मंदिर मेरुसमान, गौतम नामें सफल विदाण ॥६॥ घर मयगल घोमानी जोम, वारू पहोंचे वांबित कोम ॥ मही यल माने महोटा राय, जो तुठे गौतमना पाय ॥७ ॥ गौतम प्रणम्यां पातक टले, उत्तम नरनी संगत मले ॥ गौतम नामें निर्मल ज्ञान, गौतम नामें वाधे वान ॥ ७ ॥ पुण्यवतं अवधारो सहु, गुरु गौतमना
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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