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________________ ४५६ जैनधर्मसिंधु. नोर ॥ मेरे ॥ चेतन चकवा चेतन चकवी, जागो विहरको सोर ॥ मेरे ॥ १॥ फैली चिंहु दीश चतु रा नाव सचि, मिट्यो नरम तम जोर ॥ आपकी चोरी आपही जानत, औरे कहत न चोर ॥ मेरे ॥२॥ अमल कमल विकस नये नूतल, मंद विष य शशी कोर ॥ श्रानंद घन एक वल्लन लागत, और न लाख किरोर ॥ मेरे ॥३॥ इति पद ॥ ॥ अथ वैराग्योपदेशी पद ॥ ॥राग कल्याण ॥ या पुद्गलका क्या विसवासा, है सुपनेका वासारे ॥ या ॥ ए आंकणी ॥ चमत कार बिजुली दे जैसा, पाणी बीच पतासा ॥ या देहीका गर्व न करना, जंगल होयगा वासा ॥ या ॥१॥ जूठे तन धन जूठे जोखन, जूठे है घरवा सा ॥ आनंद घन कहे सवही जूठे, साचा शिव पुर वासा ॥ या ॥२॥ इति ॥ ॥इति पंचम परिवेद समाप्त ॥
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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