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________________ पंचमपरिबेद. ४११ मते, उर श्रागें निशाना ॥ नीली पीली बेरख चल ती, उत्तर किया पयाना ॥ ह॥२॥ नरपति हो के तखतपर बेठे, नरिया नारी खजाना ॥ सांज स वारे मुजरा लेते, उपर हाथ बेकाना ॥ ह॥३॥ पोथी पढ पढ हिंछ नूले, मुसलमान कुराना ॥ रुपचंद कहे अरे नाश् संतो, हरदम प्रनु गुण गाना ॥ ह ॥४॥ ॥ अथ नाव स्वाध्याय ॥ ॥ धन्य धन्य ते दिन महारो ॥ ए देशी ॥ ॥रे नवि नाव हृदय धरो, जे जे धर्मनो धोरी एकल मब अखंग जे, कापे कर्मनी दोरी ॥रे नवि०॥१॥ दान शियल तपत्रण ए, पातक मल धोवे ॥ नाव जो चोथो नवि मले, तो ते निष्फल होवे ॥रे नवि० ॥२॥ वेद पुराण सिद्धांतमां, षट् दर्शन नांखे ॥ नाव विना नव संतति, पमतां को ण राखे ॥ रे नवि० ॥३॥ तारक रुप ए विश्वमां, ऊंपे जग नाण ॥ जरतादिक शुन लावधी, पाम्या पद निर्वाण ॥ रे नवि०॥४॥ औषध आय उपाय जे, मंत्र यंत्रने मूली, जावे सिफ होवे सदा, नाव विण सहु घूली ॥ रे ॥ वि० ॥ ५॥ उदय रत्न क हे जावधी, कोण केल नर तरिया ॥ शोधी जोजो सूत्रमा सजान गुण दरिया ॥ रे जविण ॥६॥
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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