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________________ पंचमपरिछेद Buu शिया, थालसवंत अजाण ॥ मे० ॥ ० ॥ १६ ॥ परणी जाइ पारकी, शुं कीधुं तें धीठ ॥ मे० ॥ पो तानुं पण पेट ए, निठुर जराय न नीठ ॥ मे० ॥ ॥ ० ॥ १७ ॥ कान कोट भूषण सहु, वेची खाधुं ते ॥ मे० ॥ निर्लज तुज घरवासमां, कहे सुख पाम्युं जेह ॥ ० ॥ ० ॥ १८ ॥ अमल समो सुगो नहीं, मानो एमुक शीख ॥ मे० ॥ बाले सुंद र देही, ते मगावे जीख ॥ मे० ॥ श्र० ॥ १७ ॥ दालिजीने दो हिलुं, सुर उग्यानुं शाल ॥ मे० ॥ श्री मंतने पण नहीं नलुं, जोतां ए जंजाल ॥ मे० ॥ ॥ अ० ॥ २० ॥ सासु वहु वढतां बतां, रीसे श्रमल जवंत || मे० बालक खाये अजाणतां, जो घर म ल हवंत ॥ मे० ॥ ० ॥ २१ ॥ प्राणी वध जिपशुं हुवे, ते तो तजीयें दूर ॥ मे० ॥ कर्मादान दशमुं कहुँ, विष व्यापार पर || मे० ॥ ० ॥ ५२ ॥ च तुर विचार ए चित्त धरी, कीजें अमल परिहार ॥ ॥ मे० ॥ खिमा विजय पंडित तो, कहे माणिक म नोहार || मे० ॥ ० ॥ ॥ अथ काया उपर सद्याय ॥ ॥ काया रे वामी कारमी, सीचंतारे शूके ॥ उठ कोम रोमा वली, फल फूल न मूके ॥ का० ॥ का या माया कारमी, जोवंतां जाशे ॥ मारग लेजो मो दनो, जीवको सुख पाशे ॥ का० ॥ २ ॥ अरिहंत
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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