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________________ ३३॥ चतुर्थपरिजेद. श्रीपदम प्रनु स्तवन होरीनी राह सांवरेसे कहियो-ए राह ॥ प्रज्जु पद्म प्रन जिन प्यारा ॥ ए टेक ॥ सुशिमा माता उदरे श्राव्या, चउद सूपन गुणसारा; लंबन शोहे रक्त कमलनु, नयरी कोसंबी वशनारा, प्रनु जीतो मोहन गारा ॥ प्रनु पद्म प्रन जिनप्यारा ॥१॥ छादशी कार्तिक वदनी सोहे, जनम तिथी ग्रह सा रा; कुल इक्ष्वाकुं दियर प्रगट्या, श्रीधरकुल शण गारा, प्रजु सब जन हितकारा॥प्रनु पद्मप्रन जिन प्यारा ॥२॥ अहमदनगरे आज श्रानन्दे, गावे गुण तुम सारा; बालमित्र करजोड़ी विनवे, पावे नवोद घि पारा; नव नव शरण तुमारा ॥ प्रनु पद्म प्रज जिनप्यारा ॥३॥ श्रीसुपार्श्वनाथ- स्तवन ॥ बनफारानी राह। सुपार्श्वजिनन्दप्रजु प्यारा, मुज स्वामी मोहनगा रा, ए टेक॥वणारशीनां तुमे वाशी, माता पृथवीम न उल्हाशीजि; रायप्रतिष्ठित कुल अंगारा, मुज स्वामी मोहनगरा ॥ १ ॥ जेष्ठ शुक्लछादशी सार, जन्म्या त्रीजगदाधारजी, तुलरासींनां धरनारा, मु ज स्वामी मोहनगारा ॥ २ ॥ मध्यम अवेयकथी श्राब्या, वान कंचनसम सोहाव्याजी ॥ ऊंचा हिश तधनुष डे सारा, मुज स्वामी मोहनगारा ॥३॥बि
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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