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________________ जैनधर्मसिंधु श्री अजिनन्दन जिन स्तवन । गजल, आज याबी राज हजुरमां ए राह | अजिनन्दन आज श्रानन्दमां, तुम दर्शनें थइ सु न मती; एक दुष्ट कुलटा बे सही, पूर्व जवनु वेर काढ्यं श्रही; अहोनिश मारे पाबलपडी, मतीचष्ट कधी मारी ति ॥ १॥ एवी पुष्ट बे जे कुमती, जस सोबते होय दुर्गति । ते दुष्टा पुर निवारिनें, श्रापो मोने सुमती । श्र ॥२॥ रही नगरमां मन मगन थइ, बालमित्र श्रति श्रानन्दथी, मांगे मुखें थी एम कही, आपो मोने शिवगती । ३ श्री सुमतिनाथ जिनु स्तवन । अवर मदन अलबेलो - ए रामा | ३३८ सुमति जिनेश्वर तारो जवाब्धिथी सुमति जिने श्वर तारों । नयरी कोशल्या धन तुज धरणी, जन्म्यो सुमति जिन प्यारो । जवा० १ कुल दीपक मेघरथ राजाना, त्रण जगत्रने तारो ॥२॥ मङ्गला माता मङ्ग ल उदरी, प्रसवे सुमति जिन सारो । जवा ॥३॥ शशी सम सोदे वदन प्रजुनुं, क्रौंच लंबन दितकारो । ज. ॥४॥ सुमती दाता समकित थापो, कुमती दूर निवा रो ॥ न. ५ ॥ श्राप हजूरे लेजो ामने, बुटे थाजनमा रो । ज. ६ ॥ बाल मित्रना प्यारा प्रभुजी, मनसुखदास तुमारो | ज. ॥ ७ ॥
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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