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________________ ३२६ जैनधर्मसिंधु. जोह करण तुम, अरे मन पर नव थाह नरो॥ए॥ ॥२॥ चिदानंद जोए नहीं मानौ तो, जनम मरन नव मुखमें परो ॥ ए ॥३॥ इति ताल दादरा दोनुं दसतो में अगीया रचावो सखी, नयना हमारी प्रजुसेलगी।दोनुजालीकी अंगीया प्रनुकी रचावो ॥ मस्तक मुगट पहनावो सखी ॥ नय० १॥ चलो सखी बागोंमें जईये ॥ चुन २ कलियां चढावो सखी ॥ नय० ॥चलो सखी जिनवंदन जयें ॥ नृत्य करो सब मिलके सखी नय० ॥३॥सांवरी मूरत खूब रची है, देखतही मन नीदारो सखी ॥ नय० ४ ॥ संवत ऊनीसे चऊदेकी साले, माघ वदि तीथ नवमी सखी ॥ नय० ॥ सुन्दर बिजयजीकी एहिअरज है ॥ नित उठ चरण पखालो सखी॥ नय०६॥ इति रागिणी नैरवी मेरो मन लागी रह्यो महावीर चरणमें जाय ॥ सिझारथके नन्दन एसे ॥ मातात्रिसला देवीमाय ॥ मे १॥ जनमतही स्वामी मेरुकंपायो, संसयदीया है मिटाय ॥ मे ॥ दावीकुंम स्वामि जनम लिया हैं, मुगत पावा पुरी जाय । मे जो कोई ध्यावे स्वामी सो फल पावे, चंद किरत गुण गाय मे०॥इति
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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