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________________ चतुर्थपरिछेद. ३०ए मता ज्ञान तरंग ॥१॥ गति चारे कीधा, आहार अनंत निःशंक ॥ पण तृप्ति न पाम्यो, जीव लाल चीयो रंक ॥ मुलहो ए वली वली, अणसणनो प रिणाम ॥ एथी पामीजे, जिवपद सुरपद गम ॥२॥ धनधन्नाशालिन, खंधोंमेघकुमार ॥ अणसण श्रा राधी, पाम्या नवनोपार ॥ शिवमंदिर जाशे, करी एक अवतार ॥ आराधन केरो, ए नवमो अधिकार ॥३॥ दशमे अधिकारे, महामंत्र नवकार ॥ मनथी नवि मूको, शिवसुख फल सहकार ॥ ए जपतां जा ये, पुर्गति दोष विकार ॥ सुपरे ए समरो, चउद पू रवनो सार ॥४॥ जन्मांतरे जातां, जो पामे नवका र ॥ तो पातक गाली, पामे सुर अवतार ॥ ए नव पद सरिखो, मंत्र न को संसार॥श्व नवने पर नवे, सु ख संपत्ति दातार ॥ ५ ॥ जुर्म नीलने नीलमी रा जा राणी थाय ॥ नव पद महिमाथी, राजसिंह म हाराय ॥ राणी रतनवती बेहु, पाम्या ने सुरनोग ॥ एक जवथी वेशे, सिद्धि वधू संयोग ॥६॥ श्रीम ती ने ए वली, मंत्र फल्यो ततकाल ॥ फणिधर की टीने, प्रगट थर फूलमाल ॥ शिवकुमरे योगी, सोव नपुरिसो कीध ॥ एम एणे मंत्रे, काज घणानां सि क॥७॥ ए दश अधिकारे, वीर जिणेसर नांख्यो॥ श्राराधन केरो, विधि जेणे चित्तमा राख्यो ॥ तेणे
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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