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________________ ३०७ जैनधर्मसिंधु. ॥ ढाल बही॥आदर तुं जोश्ने श्रापणी ॥ए देशी॥ . ॥धन्य धन्य ते दिन माहरो, जिहां कीधो धर्म॥ दान शीयल तपाचरी, टाल्यां दुष्कर्म ॥ध॥१॥ शत्रुजयादिक तीर्थनी, जे कीधी यात्र ॥ युगतें जिन वर पूजीया, वली पोख्यां पात्र ॥ ध० ॥२॥ पुस्तक ज्ञान लखावीयां, जिणहर जिणचैत्य ॥ संघ चतुर्वि ध सांचव्या, ए साते खेत्र ॥ध० ॥३॥ पमिकमणां सुपरें करयां, अनुकंपा दान ॥ साधु सूरि उवकायनें दीधां बहुमान ॥ ध० ॥४॥ धर्मकारज अनुमोदि ये, एम वारोवार ॥ शिवगति आराधनतणो, ए सा तमो अधिकार ॥ ध० ॥५॥ नाव जलो मन श्रा णीयें, चित्ताणी गम ॥ समता नावें नावीयें, ए आतमराम ॥ ध० ॥६॥ सुख दुःख कारण जीवने, को अवर न होय ॥ कर्म आप जे आचस्यां, नो गवियें सोय ॥ ध०॥७॥ समता विण जे अनुसरे, प्राणी पुण्यनां काम ॥ बारउपर ते लीपणुं, कांखर चित्राम ॥ धम् ॥ ॥ नाव जली परें जावीयें, ए ध मनो सार ॥ शिवगति आराधनतणो, ए आठमो अधिकार ॥ध०॥ ए॥ ॥ ढाल सातमी ॥ रेवतगिरि उपरें ॥ ए देशी॥ ॥हवे अवसर जाणी, करीयें संलेषण सार ॥श्र . सण आदरीयें, पच्चरकी चार आहार ॥ लक्षुता स वि मूकी, बांडी ममता ग ॥ संए श्रातम खेले, स
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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