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________________ ३०० जैनधर्मसिंधु. ॥ ६ ॥ एक खट मासी चार चौमासी, दोसय ब सो हम करे जी ॥ बीजां तप पण बहुश्रुत सुत्रत, मौन एकादशी व्रत धरे जी ॥ ७ ॥ एक अधम सुर मिथ्यादृष्टि, देवता सुव्रत साधुने जी ॥ पूर्वोपाजित कर्म उदेरी, अंगें वधारे व्याधिने जी ॥ ८ ॥ कर्मे नडीयो पापें जमीयो, सुर कहे जार्ज औषध जीजी ॥ साधु न जाये रोष जराये, पाटु प्रहारें यो मुनि जी ॥ ए ॥ मुनि मन वचन काय त्रियोगें, ध्यान न दहे कर्मने जी ॥ केवल पामी जिन पद रामी, सुव्रतनेम कहे श्यामने जी ॥ १० ॥ ॥ ढाल चोथी ॥ कान पयंपे नेमने ए, धन्य धन्य यादव वंश ॥ जिहां प्रभु श्रवतस्या ए ॥ मुज मन मानस हंस, जयो जिन नेमने ए ॥ १ ॥ धन्य शि वा देवी मामी ए, समुद्रविजय धन्य तात ॥ सुजात जगतगुरु ए, रत्नत्रयी अवदात || जयो० ॥ २ ॥ चरण विराधी उपनो ए, हुं नवमो वासुदेव ॥जयो० ॥ तिथे मन नवि उसे ए, चरण धरमनी सेव ॥ जयो० ॥ ३ ॥ हाथी जेम कादव गल्यो ए जाएं उपादेय देय ॥ जय० ॥ तो पण हुं न करी शकुं ए दुष्ट कर्मना ज्ञेय ॥ जय० ॥ ४ ॥ पण सरणो ब लियातणो ए, कीजें सीजे काज ॥ जय० ॥ एहवा वचनने सांजली ए ॥ बांह ग्रह्यानी लाज ॥ जयो० ॥ ५ ॥ नेम कहे एकादशी ए, समकित युत आरा
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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