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________________ चतुर्थपरिजेद. व्यो री॥ए ॥ बुद्धि उद्यम गुरु जोग, शास्त्र अ नेक जण्यो री ॥ यौवनवय अगीयार, रूपवती स्त्री परण्यो री ॥ १० ॥ जिन पूजन मुनिदान, सुव्रत पचरकाण धरे री॥ अगीयार कंचन कोम, नायक पुण्य नरेरी ॥ ११॥ धर्मघोष अणगार, तिथि अ धिकार कहे री॥ सांजलि सुव्रत शेठ, जाति स्मरण लहेरी॥ १२ ॥ निजप्रत्यय मुनि शाख, नक्तं तप उच्चरे री ॥ एकादशी दिन श्राउ, पहोरो पोसो धरे री॥ १३ ॥ इति ॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ पत्नी संयुतें पोसह लीधो, सुव्रत शेतें अन्यदा जी ॥ अवसर जाणी तस्कर आ व्या, घरमां धन बुंटे तदा जी ॥१॥ शासन जक्ते देवि शक्ते, थंगाणा ते बापमा जी ॥ कोलाहल सुणि कोटवाल आव्यो, नूप श्रागल धस्या रांकडा जी ॥२॥ पोसह पारी देव जुहारी, दयावंत लेनेटको जी॥रायने प्रणमी चोर मूकावी, शेतें कीधो पारणों जी ॥३॥ अन्य दिवस विश्वानल लागो, सोरीपुरमां आकरो जी॥ शेठजी पोसह समरस बेठा, लोक कहे हठ कां करो जी ॥ ४॥ पुण्यें हाट व. खारो शेउनी, उगरी सहु प्रशंसा करे जी॥ हरखें शेठजी तपउजणुं, प्रेमदा साथे श्रादरे जी ॥५॥ पुत्रने घरनो नार जलावी, संवेगी शिर सेहरोजी॥ चउनाणी विजयशेखर सूरि, पासें तपव्रत श्रादरेजी
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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