SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 315
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थपरिजेद. ॥ अथ चतुर्थ परिछेद प्रारंजः ॥ ॥ अथश्री सीमंधर जिन स्तवन ॥ रासडाना राग मां ॥ रुपैयो ते श्रावँ रोकमो. महारा वालाजी रे ॥ ए देशी॥ ॥ मनहुं ते महारं मोकले, महारावालाजीरे ॥ ससिहर साथे संदेश ॥ जश्ने कहेजो महरावाला जी रे ॥ ए आंकणी ॥ जरतना नक्तने तारवा ॥ मा० ॥ एक वार श्रावोने आदेश ॥ ज० ॥१॥ प्रजुजी वसो पुष्करावती ॥ मा महाविदेह खेत्र मकार ॥ ज० ॥ पुरी राजें पुंडरिगिणी ॥ मा० ॥ जिहां प्रज्जुनो अवतार ॥ ज० ॥२॥ श्री सीमंधर साहेवा ॥मा॥ विचरंता वीतराग ॥ जश् ॥ पमिबोहो बहु प्राणीने॥मा॥ तेहनो पामे कुण ताग ॥ ज० ॥३॥ मन जाणे कमी मढुं ॥मा ॥ पण पोतें नहीं पांख ॥ ज० ॥ जगवंत तुम जोवा जणी ॥ मा० ॥ अलजो धरे ले ए आंख ॥ जय० ॥ ४॥ पुर्गम महोटा मुंगरा ॥मा॥ नदी नालानो नहिं पार ॥ जय० ॥ घाटीनी आंटी घणी॥ मा०॥ अटवीपंथ अपार ॥ जय० ॥ ५॥ कोमी सोनैये कासीदी ॥ करनारो नहीं कोय ॥ ज० ॥ कागलीयो केम मोकढुं ॥ मा० ॥ होंश तो नित्य नवली होय ॥ जय० ॥ ६ ॥ लखु जे जे लेखमां ॥ मा० ॥ लाख गमे अनिलाष ॥ जय० ॥
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy