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________________ जैनधर्मसिंधु. जीव श्रागंतक नवका शुजाशन आयुष्य बांधताहे. आयुष्य बंधका तीसरा नाग बहुत करके पंच पर्वी की तिथीयोके दिन आताहे इसलिए पंच पर्वणीमे आरंज त्यागादिक सुकृत्यों कीये जांय तो अवश्य शुज आयुष्य बंध होय. वास्ते पंच पर्वणीमे अवश्य विशेष धर्म कृत्य करना उचित हे. प्राणी द्वितीया तिथीके श्राराधनसें रागद्वेषकों जय करके श्रागंतुक नवमें साधु श्रावक यह दो प्र कारके धर्मकी प्राप्ति कर शक्ताहे. पंचमीके आराधनसे पंच ज्ञानकों प्राप्त करके फिर पंच विध प्रमादका त्याग होनेसें शुरू चारित्र धर्मकों प्राप्त हो शक्ता हे. __ पुष्ट अष्ट कर्मोके नाश करनेके लिए और अष्ट मदका जय करनेके लिए पुनः अष्ट प्रवचन माता का परिपालनके लिए अष्टमी तिथीकी आराधना करना ठीक हे. एकादशीके श्राराधनसें ग्यारह अंगके ज्ञानकी प्राप्ति होतीदे और ग्यारह श्रावककी प्रतिमाकों व हनेकी योग्यता प्राप्त होती हे. " चतुर्दशीके श्राराधनसें प्राणी चउद पूर्वके ज्ञान योग्य होके चलदे राजके उपर सिझत्वावस्थाकों प्राप्त होता हे. ... यह पंच पर्वणीका महिमां याद करके पंच पर्व
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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