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________________ तृतीयपरिजेद. २४ए विज्ञान मान जन रंजन सावधानो। जन्म घ्यं विरचये त्सकलं स्वकीयम् ॥१॥ इति दिनचर्यायां प्रथम वर्गः समाप्तः ॥ ॥ अथ द्वितीय वर्गः । प्रारज्यते ॥ दूसरा प्रहर दिन चढते अपने घर आयके विचक्षण जन जहां जीवाकुल नूमी नहोय एसे स्थान पर पूर्व दिशा सन्मुख बेठके स्नान करे. स्नान करनेके लिए चार पगवाला, जिस्मे नल लगाया होय एसा, एक बाजोट (पट्टा ) बनावे. जिस्का पाणी मुसरे बासणमे लेके निर्जीव स्थानमे डाला जाता होय तो जीवकी ठीक यत्ना होशकतीहे. रजस्वला अथवा नीच जातिका स्पर्श हुवा होय, अथवा सूतक श्राया होय, घरमे कोश्का मरण हुवा होय तो मस्तकसे सर्वांग स्नान करना. उपरोक्त कारण सीवाय देव पूजाके वास्ते बुद्धिवंत मस्तक वर्जित उष्ण जलसें स्नान करे. योगी पुरुष कहतेंहें की चंड, सूर्यके किरणोके स्पर्शसे समग्र जगत शुक होजातादे तो मस्तकनी उनके किरणोसे स्पर्शित होनेसें सदा पवित्र गिना जाताहे. __हर रोज शिर जीजोनेसें जीवघात होताहे. इसलिए नही निजोना. दया एहि हे सार जिस्मे एसे
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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