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________________ २२४ जैनधर्मसिंधु. पारणा. सिझपद गुणणा ॥ उद्यापनमे मोति और प्रवाल चढावना । पुजा पढाना गुरुनक्ति करना ॥ सिकि वधू कंठानरण तप ॥ प्रथम दो. उपवास (बेला) पारणा. एक उपवास पारणा. तीन उपवास पारणा. दो उपवास पारणा. एक उपवास पारणा एसे नव उपवास करनेसे तप पूरा होता हे. सि, रूपद गुणना गुरु ज्ञान नक्ति करना ॥ ॥ रत्नारोहण तप ॥ एकाशन एक, नीवी एक. बायंबिल एक उपवास एक ॥ प्रथमावली ॥ नीवी, आयंबिल, उपवास, एकासन. ॥हितीयावली ॥ श्रा यंबिल, उपवास, एकाशन, नीवि. तृतीयावली ॥ उ, पवास, एकासण, नीवी, आयंबिल ॥ चतुर्थावली ॥ एक उपवास विगई, निविता रहित नीवी, आयंबिल ॥ पंचमावली ॥ इसतरे पांच श्रावलीसे रत्नारोह ण तप होता हे. सिझपद गुणना. उद्यापनमें रत्नमय नवकारवाली पांच, रत्नमय स्थापनाचार्य पांच, रत्नमय जिन बिंब पांच, मोदक वीस, इतनी वस्तु पुस्तकके पास ढोकना. तप के दिन ब्रह्मचर्य पाल ना. ज्ञान दर्शन चारित्रका आराधन करना. पारणाके दिन गुरु जक्ति करनी. अष्ट प्रकारी पूजा करनी. इस तपसे संतान प्राप्ती होती हे. गर्नश्राव होना बंध होता हे. श्राशोज सुदिपंचमीसे ए तप सरु करना.
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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