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________________ द्वितीयपरिच्छेद. १२ उत्पादपूर्व पठनगुण यु० । ग्रायणी पूर्व पठनगुण युक्ताय० । १३ १४ वीर्यप्रवाद पूर्व पठनगुण युक्ताय० । १५ स्तिप्रवाद पूर्व पवनगुणयुक्ताय० । १६ ज्ञानप्रवाद पूर्व पठनगुणयुक्ता० । १७ सत्यप्रवाद पूर्व पवनगुण यु० । १० श्रात्मप्रवाद पूर्व पवनगुण युक्ताय० । १० कर्म्म प्रवाद पूर्व पवनगुण युक्ताय० । २० प्रत्याख्यान प्रवाद पूर्व पठनगुण युक्ताय० । २१ विद्याप्रवाद पूर्व पवनगुण युक्ताय० । २२ विंध्य प्रवाद पूर्व पठनगुण यु० । २३ प्राणायामप्रवाद पूर्व पठनगुण यु० । २४ क्रियाविसाल पूर्व पठनगुण यु० । २५ लोकबिंदुसार पूर्व पठनगुण यु० । ॥ इति पंचविंशति उपाध्याय गुणाः ॥ इस रीतसें पंचवीस नमस्कार करें (खमाहो के ) अन्नत्थूस० इत्यादि कहिके पंचवीस लोगस्सका का उग्ग करै । पारके एक लोगस्स कहके । ( पीछे ) पूर्वोक्त करणी करें ॥ इति चतुर्थ दिवस विधिः ॥ अथ पंचम दिवस विधि. uu ॥ ( एमो लोए सबसाहूणं) इस पदका ( 2 ) हजार गुणनो करै । साधुपद काले वर्ण है इस सें उडदका बल करै । सर्व साधुपद के सत्ताईस गुण चिंतवके नमस्कार करै ॥ ॥ በ
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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