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________________ १एज जैनधर्मसिंधु. ॥इति षत्रिंशदाचार्य गुणाः॥ यह बत्तीस नमस्कार करिके । अन्नबनससिएणं (इत्यादि कहिके) बत्तीस (३६) लोगस्तनो का उसग्ग करै । पारिके एक लोगस्स ऊंचै स्वरसें कहि यथोक्त करणी । अनुक्रमसें करै । इति तृतीय दिवस विधि ॥३॥ ॥अथ चतुर्थ दिवस विधि लि॥ ॥(ॐ झीणमो उवसायाणं) इस पदको (२) हजार गुणणो करै । हस्या मुंगकी दाल प्रमुखनो आंबिल करै । उपाध्याय पदके (२५) गुण याद करि के । नमस्कार करै ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ अथ उपाध्याय पदके २५ गुण लि० ॥ त्याचारांगसूत्रपठनगुणयुक्तायश्रीउपाध्यायेन्योनम २ सुयगमांगसूत्र पठन गुणयुक्ताय श्रीउपाध्या ३ श्रीगणांगसूत्र पठनगुणयुक्ताय श्रीज। ४ श्रीसमवायांगसूत्र पग्गुण युक्ताय । ५ श्रीनगवतीसूत्र पठनगुण युक्ताय । ६ श्रीज्ञातासूत्रपठनगुणयुक्ताय । ७ श्रीउपासकदशासूत्र पठनगुण युक्ताय । श्रीअन्तगडदशासूत्र पठनगुण युक्ताय । ए श्रीअणुत्तरोववाईसूत्र पठनगुण युक्ताय। १० श्रीप्रश्नव्याकरणसूत्र पठन यु। ११ श्रीविपाकसूत्र पठनगुण यु।
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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