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________________ प्रथमपरिछेद. ९५३ होय, परदर्शनीनी आकांदा कीधी होय, फल प्रत्ये संदेह आण्यो होय, पर पाखंमीनी प्रशंसा कीधी होय, परपाखंडीनो संस्तव, परिचय कीधो होय परपाखंमी संघाते आलाप संलाप कीधा होय, जे कांइ समकित रत्नने विषे आठ प्रकारें, जाणतां अजाणतां दिवस संबंधि, दोष लगाड्यो होय तस्स मिबामि उक॥२॥ पदेवू स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रतने विषे जे अतिचार लागा होय, ते आलो. री शवशं गाढो घाव घाल्यो दोय, गाढे बंधनें बां ध्यो होय, अवयवनो बेद कीधो दोय अतिनार नयो होय, नात पाणीनो विवेद कीधो दोय, जे कांश दिवस संबंधि दोष लागो होय, तस्स मिलामि उक्कम. ॥३॥ बीजुं स्थूल मृषावाद विरमण व्रतनेविषे, जे अतिचार दोष लागो होय, ते आलोचं बु. सहसात्कारें कोइ प्रत्ये कूमां आल दीधां दोय, रहस्य गनी वात प्रगट कीधी होय,स्त्रीपुरुषना मर्म प्रकाश्यां होय,कोश्ने अपाय पाडवा नणी मृषा उपदेश दीधो दोय कूडा लेख लख्या
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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