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________________ प्रथमपरिछेद. १५१ नो पाठ कदेवो. पठी डावो ढींचण उँचो राखी ने नमोबुणंकदेवं. ॥ इति सामायिक विधि. ॥अथ सामायिक पारवान विधिः॥ प्रथम नककार गणी, इरियावदि० तस्स उत्तरी कही, एक लोगस्स (अथवा ) चार नवकारनो कानस्सग्ग करी नमो अरिहंता णं पूर्वक कानस्सग्ग पारी प्रगट लोग्गस्स क दीने मावो ढींचण चंचो करी नमोनुणंनो पाठ कहेवो. पठी सामाश्य वयजुत्तो कही, दश म नना, दश वचनना, बार कायाना, इत्यादि पाठ कदेवा ॥ इति सामायिक पारवाविधि॥ ॥ अथ दैवसिक प्रतिक्रमण विधिः ॥ प्रथम गुरु पासे आज्ञा मागीये बैये, तेवी रीते आज्ञा मागीने पनी नवकार ग एणी, लोगस्स कही, डाबो ढींचण चंचो करी, नमोलुणंनो पाठ कही बे खामणां देवां, तिहां बीजे खामणे आवसिआए ए पाठ न कहेवो पी पमिकमण गवद् तेमां आवस्सश्बाकारेण ए पाठ नणवो.पनी उना थ(नवकार गणवो.) पनी करेनीनंते कहीने श्वामिगमि०पनी तस्स
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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