SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५० जैनधर्मसिंधु. नवस ग्गहरं नमुक्षुणं कही गुरु वंदन करी सजाय कहीयें, पी बघा आवश्यक जणी वां दणांबे वार देने पच्चरकाण करीये. पठी सा मायिक पारवा त्रण नवकार गणीये. पी 'जंजं मणेण बई' इत्यादिक गाथा कही प्रतिक्रमण समाप्त करीयें ॥ इति विधिपद प्रतिकमणःस० ॥ अथ लोकागब प्रतिक्रमण विधिः॥ सामायक लेवानी विधिः प्रथम पोबाणानां सर्व वस्त्र पमिलेहवां त था यत्नायें आसनियुं पाथरवू, ते पनी गुरुने बामि खमासमणो० ॥ इत्यादिक व्रण वां दणां देवां, पनी श्रीमंधरजीने त्रणवांदणदेई पठी नाचे बेसीने नवकार गणवो, पठी प. दिअनो पाठ कहेवो. परी शरियावदि० तस्स उत्तरी० कही (एक) लोग्गस्स (अथवा) चार नवकारनो कानस्सग्ग करवो, पनी नमो अ रिहं ताणं कदी कानस्सग्ग पारवो प्रगट लो गस्स कही गुरुनी पासे सामायिकनी आझा मागवी. (कदापि) गुरु न होय तो सीमंधर स्वामी पासेथी आझा मागीने करेमी नंते
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy