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________________ १२ए प्रथमपरिवेद. संदिस्सह नगवन् देवसिय आलोश्यं पमिक्तं पत्तेय खामणेणं अनुजिमि अग्निंतरपखियं लारेकह्यो जिण रीतें सगलोकहणो परे वांदणा देवेपत्रे (पाखी) सूत्र कदे श्रावक श्राविका वंदेत् कहे पमिकमे देवसियं के ठिकाणे पखीयं ३ इसो कहणो तीन नवकार तीन करेमि नंते कहीने वंदेतु कहे मूलगुण उत्तरगुण अतीचार विशु-निमित्तं करेमि कानसगं श्वामि ग मि कानसगं जोम पबै तस्सुतरी० अ नत्र पछे पाखी पडिक्कमणे १२ चोमासे २० संवत्सरी ४० लोगस्सनो कानसग करे पडे प्रगट लोगस्स कदे पडे मुदपत्ती पमिलेद दोय वांदणा देवे पड़े श्बाकारेण बंदिस्सद नगवन् समाप्त खामणेणं अनुमिमि अग्निंतर पखीयं ३ लारे कह्यो जिणतरे कदे पश्चा0जाखाम णाखामुं पुन्यवंतो एकखमासमण देईतीन तीन नवकार गुणी चार वार पाखीसमाप्त खामणाषा मो पले खामणा खामी पळे पुन्यवंतोपाखीने खेषे एक उपवास अथवा दोय प्रांबिल तीन नीवी (अथवा) चार एकासणा (अथवा) दोय हजा
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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