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________________ प्रथमपरिवेद. एप गाथानो कानस्सग्ग करवो, जो आठ गाथा न आवमती होय तो आठ नवकारनो कान म्सग्ग करवो,ते पारीने प्रगट लोगस्स कहेवो॥ पठी बेशीने त्रीजा आवश्यकनी मुहपत्ति पडि लेहीने वांदणां वे देवां ॥ पठी ऊना थईने इलाकारेण संदिसह नगवन् देवसिअं आलोठं वं आलोएमि कही जो मे देवसि कदेवं, पठी सात लाख० कही, अढार पापस्थानक आलोइने, “सबस्सवि देवसियं" कहेवू ॥ पठी नीचं बसी जमणो ढींचण कन्नो राखी, एक नवकार गणी, करेमिनंते श्वामि पडिक्क मिनंकही वंदितासूत्र संपूर्ण कदीने वांदणां बे देवां ॥ पठी खमासमण देई इलाकारेण संदि सह नगवन् अग्नहिउँदं अग्निंतर देवसियंखा मेनं एम कही, अग्नहि खामीने वांदणांबेवार देवां ॥ पठी ऊना थई "आयरिय नवजाय" कही करेमि नंते बामि गमि कानस्सग्गं जो मे देवसि कह “तस्स उत्तरी' कही बे लो गरसनो अथवा आठ नवकारनो कानस्सग्ग करी पारीने प्रगट लोगस्स कदेवो ॥ पनी सब
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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