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________________ Uყ जैनधर्मसिंधु. . पारी बीजी थोय कहेवी ॥ पनी पुस्करवरदी कही, “सुअस्स जगवन करेमि कानस्सग्गं वंद णवत्तिाए” कही, एक नवकारनो कानस्सग्ग करी, त्रीजी थोय कहेवी ॥ पी सिहाणं बुझा एंवेयावच्चगराणं करेमिकानस्सग्गं अन्न ब० नो पाठ कही, एक नवकारनो कानस्सग्ग करी पारी "नमोऽर्हत्” कही, चोथी थोय क देवी॥पली बेशी दाथ जोडीने “नमुतुणं” कही खमासमण देश, “नगवानदं” कहे. वली बीजें खमासमण देश, “आचार्यदं” कहेवू, वलीत्रीजुं खमासमण देश, “नपाध्यायदं" कहेवू वली चोथं खमासमण देश, सर्व साधुन्योऽहं” क देवं, ए रीतें चार खमासमण देवापूर्वक जग वानादि चारने थोन वंदन करीयें ॥ पछी खमा समण आपी बाकारेण संदिसह नगवन् “दे वसिप्रतिक्रमणे गवं” एम कदी जमणो हाथ चरवला अथवा कटासणा ऊपर थापीने, श्वं सवस्सवि देवसिअं0 नो पाठ कदी ऊना थई, करेमि नंतेश्वामि गमि कानस्सगं जो मे दे वसि तस्स उत्तरि कही अतिचारनीआठ
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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