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________________ २ जैनधर्मसिंधु. कराव्यां, अनुमोद्यां दोय, दिनकृत्यप्रतिक मण, विनय, वैयावच न कीधा, पनेरु जे कांइ वीतरागनी आज्ञा विरुध कीधुं, कराव्युं, अनु मोघुं होय ॥ ए चिहुं प्रकार मांदे ने जे को इ प्रतिचार पद दिवसमांहि सूक्ष्म, बादर, जा एतां, अजाणतां हुई होय ते सवि हुं मने, व चने, कायायें करी तस्स मिचामि एक्कडं ॥ १८ ॥ एवंकारे श्रावकतणे धर्मे, श्री समकित मूल बारवत, एकसो चोवीस अतिचारमांदे नेरो जे कोइ प्रतिचार पद दिवस मांदि सूक्ष्म, बा दर, जाणतां अजाणतां हुर्ज होय ते सवि हुं मने वचने कायायें करी तस्स मिचामि डुक्करं ॥ इति श्री श्रावकपरकी, चोमासी, संवचरी तिचार समाप्त ॥ ५६ ॥ ॥ अथ प्रभातना पच्चरका | ॥ ॥ प्रथम नमुक्कार सहि मुहसदिनुं ॥ ॥ उग्गय सुरे, न मुक्कार सदियं, मुसिदियं पञ्चकाई ॥ चनविदं पि च्प्राहारं असणं पाणं खाइ मं,साइमं॥अन्नचणानोगेणं, सहसागारेणं, मदत्त रागारेणं, सवसमादिवत्तियागारेणं वो सिरे ॥ ६७ ॥
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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