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________________ वाये और रायबहाउर श्रीधनपतसिंघजीने तो श्रीसिखाचखजीकी तलहट्टीपर तीर्थनायककी स्थापना समय अंजनशलाका करवायके लोंकेगळपर आय पमता अपूर्जेरोंका आदेप दूर कराय दियाया जिनसें इन महोदयोंका इस अवसरपर उपकार मानना पुरस्त धारते है. उपर लिखें महाशयोने यद्यपि लौंके गलकों शोलाया परं रायबहाउर श्रीमंत महोदय श्रीबुधसिंघजी उधेरियाने तो अनेक तीर्थस्थानोपर अपने पुण्यकर्मोपार्जितं न्याय लक्ष्मीकों सफल करनेमें अत्यंतहि अगवानी करी है. इतनाहिं नहिं परं लोंके गन्नवाले ढूंढक हें एसा जो आरोप था उनकों परास्त कर जैन धर्मको अत्यंत दीप्यमान करश्रीसंघमें ( तीसरी कोन्फरन्समें ) अग्रणीय पद धारण कीया इत्यादि इत्यादि कौटिक गुणगण संपन्न प्राग्भार पुण्यवंत सेठजी रायबहार श्रीबुधसिंघजी उधेरियाकेहि हस्तकमलमे यह अनेकानेक जनमनानंद प्रद यह ग्रंथ समर्पण कर महोदयके अचल कीर्ति स्थंभेक साथ इनकोली अचल कीर्तिवंत करते हैं जिनके वांचन मनन श्रवण कर अनेकानेक नव्य सत्वोंकों अनंतानंद अक्ष्य ज्ञानपदकी प्राप्ति हो यह हमारी अनीष्टार्थ सिद्धी है. तथास्तु.
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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