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________________ तीर्थंकर नेमिनाथ का जन्म उधर शौरीपुर में 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ के जन्म के 15 माह पहले से ही रत्नों की वृष्टि हो रही थी। रत्नवृष्टि प्रारंभ होने के 6 माह पश्चात् नरेश समुद्रविजय की पटरानी शिवा देवी ने पिछली रयण में सुन्दर 16 स्वप्न देखे व उनका फल अपने भर्तार से जानकर वह अति प्रसन्नता को प्राप्त हुई। तीर्थंकर नेमिनाथ कार्तिक शुक्ला छठवी के दिन देवों के आसनों को कंपित करते हुए स्वर्ग से च्युत होकर माता शिवादेवी के गर्भ में आये। इस बीच 56 दिवकुमारियां माता की दिन-रात सेवा करती थी। __ महारानी शिवादेवी पूजा, दान आदि कर अपना समय बिताने लगी। श्रावण शुक्ला छठी को चंद्रमा के चित्रा नक्षत्र के संयोग के समय जगत को जीतने वाली महारानी शिवादेवी ने अतिशय सुन्दर पुत्र को जन्म दिया। तीर्थंकर बालक जन्म से ही तीन ज्ञान-'मति, श्रुत व अवधि' के धारी थे व 1008 लक्षणों से सुशोभित थे। तीर्थंकर बालक के जन्म के समय भवनवासी देवों के यहां स्वतः शंखों का जोरदार शब्द होने लगा। व्यंतर देवों के यहां पटह, सूर्यलोक में सिंहनाद व कल्पवासी देवों के यहां स्वतः घंटे बजने लगे। इन्द्र व देवताओं के आसन कंपित होने लगे। तब अपने अवधिज्ञान से तीर्थंकर बालक का जन्म जानकर इन्द्र व देवता शौरीपुर नगरी आये। इन्द्राणी शची ने बालक को गोद में ले लिया व माँ को कोई कष्ट न हो, इसलिए तीर्थंकर बालक की जगह उसी प्रकार के मायामई बालक को माँ के पास रख दिया। जब तीर्थंकर बालक को शची बाहर लाई, तो इन्द्र ने हजार नेत्र कर प्रभु के दर्शन करके अपने को धन्य समझा व तीर्थंकर बालक को सपरिवार वायु मार्ग से ले जाकर प्रभु को पांडुक शिला पर विराजमान कर रत्नजटित 1008 कलशों से प्रभु का अभिषेक किया। तत्पश्चात भावविभोर होकर सभी देवी-देवताओं व इन्द्र-इन्द्राणी ने भारी उत्सव मनाकर व नृत्यगान करके प्रभु का जन्म संक्षिप्त जैन महाभारत - 1
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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