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________________ से चंद्रकांत व शशिप्रभ, वेगवती से वेगवान व वायुवेग पुत्र हुए थे। वसुदेव की मदनवेगा रानी से दृढमुष्टि, अनावृष्टि व वहिममुष्टि, बंधुमति रानी से बंधुषेण व सिंहसेन, प्रियंगु सुन्दरी से शीलायुध, प्रभावती से गंधार व पिंगल, जरा नाम की रानी से जरतकुमार और वाल्हीक पुत्रों ने जन्म लिया था। अवन्ति महारानी से सुमुख, दुर्मुख व महारण, रोहणी महारानी से बलदेव, सारण एवं विदूरथ; बालचन्द्रा महारानी से वज्रदृष्ट व अमितप्रभ तथा देवकी महारानी से श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। ___एक दिन विद्याधरों के स्वामी सुकेतु का दूत आकाश मार्ग से मथुरा आया व नगर प्रवेश कर अनुमति लेकर राजसभा में उपस्थित हुआ। वह सभी उपस्थित सभासदों को नमस्कार कर बोला कि मैं रथनूपुर नरेश सुकेतु का दूत हूँ। हमारे नरेश सुकेतु की महारानी का नाम स्वयंप्रभा है। उनकी अति रूपवान व गुणवान सत्यभामा नाम की पुत्री है। आप श्रीकृष्ण के लिए उसे स्वीकार करने की आज्ञा प्रदान करें। सभा की स्वीकारोक्ति के बाद भेंट स्वीकार करने के बाद वह दूत शीघ्र ही वायुमार्ग से रथनूपुर वापिस चला गया। दूत से शुभ समाचार पाकर रथनूपुर नरेश सुकेतु अपनी पुत्री सत्यभामा के साथ एवं सुकेत का भाई रतिमाल अपनी कन्या रेवती के साथ मथुरा आये व सत्यभामा का विवाह श्रीकृष्ण से व रेवती का विवाह बलराम से कर दिया। उधर जीवद्यसा अपने पिता जरासंध के पास गई व विस्तार से संपूर्ण घटनाक्रम उन्हें बतलाकर जोर-जोर से रोने लगी। तब जरासंध ने अपनी पुत्री को सांत्वना देते हुए कहा कि वे सभी यादव शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त होंगे। यादवों से बदला लेने हेतु पहले तो जरासंध ने अपने शक्तिशाली पुत्र कालभवन को यादवों से लड़ने भेजा। कालभवन ने यादवों से 17 बार युद्ध किया पर अंत में वह युद्ध क्षेत्र में ही मारा गया। तब जरासंध ने अपने भाई अपराजित को युद्ध हेतु भेजा। पदम पुराण में अपराजित को जरासंध का ज्येष्ठ पुत्र बतलाया गया है। अपराजित ने यादवों के साथ 346 बार युद्ध किया; पर अंत में वह भी श्रीकृष्ण के हाथों युद्ध में मारा गया। 70 - संक्षिप्त जैन महाभारत
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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