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________________ आपके घर से निकल गया था, वही मैं आपका छोटा भाई वसुदेव हूँ। 100 वर्ष बीत जाने पर वह आपके पास आया है व आपके चरणों में प्रणाम करता है। तभी समुद्रविजय आदि ने अस्त्र-शस्त्र फेंक दिये व वे अपने छोटे भाई वसुदेव के पास पहुँच गये। उधर वसुदेव भी रथ से उतरकर बड़े भाई के चरणों में गिर गये। तभी वसुदेव के शेष भाई भी आ गये व सभी ने प्रेमाश्रुओं से युद्धस्थल को भिगो दिया। तब सभी के सम्मुख रोहिणी का वसुदेव के साथ राजकीय सम्मान के साथ विवाह सम्पन्न हुआ। अथनंतर किसी समय रोहणी ने स्वप्न में विशाल सफेद गज, बड़ी लहरों से युक्त समुद्र, पूर्ण चंद्रमा व मुख में प्रवेश करता श्वेत सिंह देखा जो उसके होने वाले धीर, वीर, अलंघ्य, चंद्रमा के समान कांति वाले, अद्वितीय, पृथ्वी के स्वामी, जनता के प्यारे पुत्र होने के सूचक थे। कालावधि पूर्ण होने पर रोहणी ने पुत्र को जन्म दिया। जिसका नामकरण संस्कार के समय पदम/राम/बलराम नाम रखा गया। वास्तव में यह नौवें बलभद्र थे। इनका जन्म रुधिर के यहां अरिष्टपुर नगर में हुआ था। जन्मोत्सव के बाद जरासंध राजगृह लौट गये। एक बार श्री मंडप में एक विद्याधरी ने आकर वसुदेव से कहा कि आपकी पत्नी वेगवती व हमारी पुत्री वालचंद्रा आपके दर्शन करना चाहती है; तब उस विद्याधरी के साथ वसुदेव गगन बल्लभपुर नगर चले गये। समुद्रविजय आदि शेष भाई शौरीपुर चले गये। बल्लभपुर में वसुदेव का विवाह बालचंद्रा से हुआ। बाद में वसुदेव वेगवती के दिये विमान से दोनों स्त्रियों के साथ अलिंगपुर नगर गये व वहां विद्युतवेगा से मिले। वहां से अपनी पूर्व पत्नी मदनवेगा व पुत्र अनावृष्टि को लेकर गंधसमृद्ध नगर गये। वहां से गांधार राजपुत्री व अपनी पूर्व पत्नी प्रभावती को साथ लिया। __तत्पश्चात वसुदेव असित पर्वत नगर नरेश सिंहदृष्ट की पुत्री व अपनी पूर्व पत्नी नीलेश्या को साथ लेकर, किन्नरोदगोद नगर से श्यामा व श्रावस्ती से प्रियंगुसुन्दरी, बंधुमति को लेकर महापुर गये। वहां से सोमश्री को भी साथ लिया व संक्षिप्त जैन महाभारत - 41
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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