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________________ हरिवंश पुराण का शौर्यपुर नगर ही पहले चंपापुर के नाम से जाना जाता होगा। जिसका नाम बाद में राजा शूर/शूरसेन के नाम पर शौरीपुर रखा गया होगा। इधर उत्तर पुराण भी उपरोक्त विवरण का बहुत ही संक्षेप में कुछ इस प्रकार वर्णन करता है। यह वर्णन पांडव पुराण से अधिक मेल खाता है। उत्तर पुराण के अनुसार भरत क्षेत्र में वत्स देश की कौशांबी नगरी में मघवा नरेश का शासन था। आपकी महारानी वीतशोका थी। इनसे रघु नामक पुत्र हुआ जो बाद में कौशांबी का शासक बना। राजा रघु मर कर सूर्यप्रभ देव बने। इसी नगरी में सुमुख नाम का धनी सेठ रहता था। एक बार कलिंग देश से वीरदत्त नाम का वैश्य पुत्र अपनी स्त्री वनमाला के साथ आया व सुमुख सेठ के यहां आश्रय पाकर रहने लगा। सुमुख सेठ वनमाला की सुन्दरता पर मुग्ध हो गया; अतः उसने उसके पति वीरदत्त को व्यापार करने 12 वर्ष के लिए बाहर भेज दिया। जब वीरदत्त 12 वर्ष पश्चात् वापिस लौटा, तो अपनी पत्नी को सुमुख सेठ की पत्नी के रूप में देखकर संसार से विरक्त व व्यथित हो गया। फिर उसने प्रोष्ठल मुनि के पास जाकर मुनि दीक्षा ले ली। उसने अंत में समाधिपूर्वक मरण किया व स्वर्ग में चित्रांगद नाम का देव बन गया। उधर सुमुख सेठ आयु के अंत में मरण कर भरत क्षेत्र के हरिवर्ष देश के भोगपुर नगर में हरिवंशीय राजा प्रभंजन के यहां उनकी मृकण्ड रानी से पुत्र रूप में जन्मा व उसका नाम सिंहकेतु रखा गया। वनमाला भी मरकर उसी देश के वस्वालय नगर के स्वामी राजा वज्रचाप की धर्मप्रिया रानी शुभा के यहां पुत्री रूप में जन्मी। जहां उसका नाम विधुन्माला रखा गया। इसके बाद सिंहकेतु का विवाह विधुन्माला से हो गया। कभी वीरदत्त से चित्रांगद बने देव ने जब उन्हें देखा तो पूर्व भव के बैर का स्मरण कर उन्हें उठाकर ले जाने लगा। पर तभी रघु नरेश से बने सूर्यप्रभ देव ने उन्हें रोककर समझाया। तब चित्रांगद देव ने उन्हें चंपापुर के वन में छोड़ दिया। यहां का नरेश कुछ ही समय पहले पुत्रविहीन होकर संक्षिप्त जैन महाभारत - 31
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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