SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुबसु नागपुर व बृहद्ध्वज मथुरा में जाकर शासन करने लगे। नारद मरकर स्वर्ग गया। काफी समय पश्चात् बृहध्वज के सुबाहु पुत्र ने शासन संभाला व उसके बाद क्रमशः दीर्घबाहु, वज्रबाहु, लब्धाभिमान, भानु, यवु, सुभानु व अंत में भीम मथुरा के शासक बने। इस प्रकार हरिवंश में हजारों राजा हुए। भगवान मुनिसुव्रतनाथ के पश्चात् तीर्थंकर नमिनाथ हुए। इन्हीं के तीर्थकाल में हरिवंश में सूर्य के समान प्रतापी यंदु नरेश हुए। यही यादवों की उत्पति के प्रमुख कारण थे। इनका नरपति नाम का पुत्र बाद में महाराजा बना। नरपति नरेश के शूर व सुवीर नाम के दो पुत्र थे। इन्हीं को राज्य का भार सौंप कर नरपति ने मुनि दीक्षा ग्रहण कर ली। ज्येष्ठ पुत्र शूर ने अपने लघु भ्राता सुवीर को मथुरा का शासक बनाया व स्वयं कुशाग्र देश में शौर्यपुर नाम का नगर बसाकर वहां राज्य करने लगे। समय व्यतीत होने पर शूर नरेश के यहां अंधकबृष्टि आदि अनेक बलशाली पुत्र हुए। किन्तु अपने पुत्रों के बड़े हो जाने पर शूर व सुवीर नरेश उन्हें राज्य भार सौंपकर सुप्रतिष्ठ नामक मुनिराज के पास दीक्षा ग्रहण कर तप करने लगे। बाद में शूर पुत्र अंधकवृष्टि का विवाह सुभद्रा नाम की कन्या से हुआ। इन दोनों से स्वर्ग से चयकर आये क्रम-क्रम से 10 पुत्र हुए। इनके नाम क्रमशः समुद्रविजय, अक्षोम्य, स्तमित सागर, हिमवान, विजय, अचल, धारण, पूरण, अभिचंद्र व वसुदेव थे। यहां पांडव पुराण में वर्णित अंधकबृष्टि के पुत्रों के नामों में 8 नाम तो यथावत हैं; केवल सुवीर की जगह अक्षोम्य व अभिनंदन की जगह अभिचंद्र का नाम आया है। ये सभी अतिबलशाली, कुशाग्र बुद्धि के घनी व सुन्दर थे। अंधकबृष्टि की दो सुन्दर व गुणवान पुत्रियां थीं। जिनके नाम क्रमशः कुन्ती व माद्री थे। वहीं मथुरा नरेश भोजकवृष्टि की महारानी पदमावती ने भी होनहार तीन पुत्रों को जन्म दिया। इनके नाम क्रमशः उग्रसेन, महासेन, व देवसेन रखे गये। पांडव पुराण में भोजकवृष्टि की महारानी का नाम सुमति कहा गया है; परन्तु उनके पुत्रों के नामों में कोई अंतर नहीं है। मेरी समझ में 30- संक्षिप्त जैन महाभारत
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy