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________________ भोजन की तैयारी करो। संपूर्ण वर्षा ऋतु बीत गई, पर कुन्ती व पांडव बलदेव को कृष्ण की अंत्येष्टि करने के लिए राजी नहीं कर पाये। शरद ऋतु प्रारंभ हो गई। श्रीकृष्ण के मृत शरीर से दुर्गंध भी आने लगी, पर बलदेव उसे मृत मानने को तैयार ही नहीं होते थे। तब बलदेव का भाई सिद्धार्थ जो पहले बलदेव का सारथी था एवं बाद में मरण कर स्वर्ग चला गया था, उसने वहां आकर नाना प्रकार से बलदेव के श्रीकृष्ण के प्रति मोह को दूर किया। तब जाकर बलदेव श्रीकृष्ण की अंत्येष्टि को तैयार हुए। फिर जरतकुमार एवं पांडवों ने मिलकर तुंगीगिरि के शिखर पर श्रीकृष्ण का अंतिम संस्कार किया व श्रीकृष्ण का राज्य जरतकुमार को दे दिया। बलदेव ने उसी स्थान पर भगवान नेमिप्रभु को साक्षी मानकर दीक्षा ग्रहण कर ली तथा वे मुनि बनकर बारह भावनाओं का चिंतवन कर घोर तपश्चरण करने लगे। संक्षिप्त जैन महाभारत 173
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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