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________________ दिया। जहां पहुँचकर बलदेव ने पहले अपनी प्यास बुझाई व बाद में एक कमलपत्र में जल लिया व उसे अपने अंग वस्त्र से ढककर श्रीकृष्ण की ओर जल्दी-जल्दी भागे। उन्होंने दूर से ही श्रीकृष्ण को एक श्वेत वस्त्र से ढका देखा व पास जाकर उनके समीप बैठ गये व उनके जागने का इंतजार करने लगे। पर काफी देर तक श्रीकृष्ण के न जागने पर वे उन्हें जगाने लगे। पर वस्त्र हटाने पर उन्हें मृत देखकर वे चीख पडे व उनके शरीर पर गिर पड़े। श्रीकृष्ण के मोह से उन्हें तत्काल मूर्छा आ गईं। तंद्रा टूटने पर शरीर में लगे तीर के घाव को देखकर वे मारने वाले की तलास में उसे ललकारने लगे। श्रीकृष्ण बलदेव को प्राणों से अधिक प्यारे थे इसलिए मोह वश उन्होंने श्रीकृष्ण को जगाने के सैंकड़ों प्रयास किये। अनेक दिन-रात व्यतीत होने पर भी वे श्रीकृष्ण के शरीर को लिए वन में इधर-उधर घूमते रहे। वर्षा ऋतु आने पर जरतकुमार पांडवों की नगरी दक्षिण मथुरा पहुँचा व वहां पांडवों को द्वारिका के भस्म हो जाने एवं कुटुंबी जनों के उसमें जल मरने की खबर दी। इसके बाद जरतकुमार ने पांडवों को श्रीकृष्ण द्वारा दिया हुआ कौस्तुभी मणि दिखाया एवं स्वयं जोर-जोर से रोने लगे, और सबको श्रीकृष्ण के अंत का समाचार सुना दिया। यह समाचार सुनकर माता कुन्ती सहित सभी पांडव व उनके परिवारजन जोर-जोर से रूदन करने लगे। तब कुछ शांत होने पर वे सभी बलदेव की खोज में जरतकुमार द्वारा बतलाये वन की ओर गमन कर गये। उस वन में पहुँचने पर उन्होंने बलदेव को श्रीकृष्ण के मृत शरीर को अपने कंधे पर लादे हुए देखा। यह देखकर कुन्ती सहित सभी पांडवों ने बलदेव को समझाया कि श्रीकृष्ण मर चुके हैं। तुम व्यर्थ ही उसके मृत शरीर को क्यों अपने कंधे पर लादे यहां-वहां फिर रहे हो। तुम्हें श्रीकृष्ण के देह की अत्येष्टि क्रिया करनी चाहिए। पर बलदेव ने उनकी बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया व उल्टे कुन्ती सहित पांडवों आदि से बोले कि श्रीकृष्ण बहुत दिनों से भूखा प्यासा है, तुम लोग उसके लिए अच्छे 172 - संक्षिप्त जैन महाभारत
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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