SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ केवलज्ञानी, 900 विपुलमती मनःपर्ययज्ञानी, 800 वादी, 1100 विक्रिया ऋद्धिधारी महामुनिराज विराजमान होकर धर्म श्रवण करते थे। प्रमुख गणिनी राजमती/राजुल के साथ 40000 आर्यिकायें, यक्षी, कात्यायनी आदि देवियां मिलकर 169000 श्रावक व 336000 श्राविकायें धर्मामृत का पान किया करते थे। असंख्यात देवी-देवता भी एवं संख्यात तिर्यंच जीव भी उनकी धर्मसभा में उपस्थित रहते थे। बारह सभाओं से घिरे सभामंडप के मध्य में विराजमान होकर भगवान नेमिनाथ ने अपना प्रथम धर्मोपदेश दिया था। उन्होंने अपनी दिव्य ध्वनि से बतलाया कि कथायें चार प्रकार की होती हैं- आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेदनि एवं निर्वेदनी। उन्होंने बताया कि यह जीव स्वयं कर्म करता है एवं उसका फल भी स्वयं भोगता है। स्वयं ही संसार में घूमता है और स्वयं ही उससे मुक्त होता है। अविद्या व राग से संक्लिष्ट होता हुआ यह जीव संसार सागर में बार-बार भ्रमण करता है और विद्या तथा वैराग्य से शुद्ध होकर सिद्ध भी हो जाता है। संसार के जीवादि समस्त पदार्थों को प्रकाशित करने वाली भगवान की दिव्य-ध्वनि लोगों के अंत:करण में आवरण सहित ज्ञानांधकार को खंड-खंड कर रही थी। उन्होंने कहा कि प्रमाण, नय निक्षेप, सतसंख्या और निर्देश आदि से संसारी-जीव का तथा अनंत ज्ञान आदि आत्मगुणों से मुक्तजीव का निश्चय करना चाहिए। वस्तु के अनेक स्वरूप हैं। उनमें से किसी एक निश्चित स्वरूप को ग्रहण करने वाला ज्ञान नय कहलाता है। नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत यह सात नय हैं। इनमें से प्रारंभ के तीन नय द्रव्यार्थिक नय के भेद हैं व शेष चार पर्यायार्थिक नय के। धर्म, अधर्म, आकाश, काल और पुदगल यह पांच अजीव तत्व हैं। तथा सम्यग्दर्शन के विषयभूत हैं। मन, वचन व काय की क्रिया को योग कहते हैं। यह योग ही आश्रव कहलाता है। जो शुभ व अशुभ के भेद से दो प्रकार का होता है। आश्रव के दो स्वामी हैं- सकषाय और अकषाय। 164 - संक्षिप्त जैन महाभारत
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy