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________________ जरासंध का क्रोध मंत्रियों की इन बातों को सुनकर और भड़क गया। उसने अजितसेन नाम के एक दूत को द्वारिका भेज दिया और चारों दिशाओं के अधीनस्थ राजाओं को अपने-अपने सैन्य दलों के साथ महायुद्ध को तैयार रहने का संदेश भिजवा दिया। उसने दुर्योधन के पास भी दूत भेजकर कहलवा भेजा कि द्वारिका में यादवों का असीम वैभव है तथा पांडव भी वहीं जीवित रहकर वास करते हैं; अतः शीघ्र ही शूरवीरों से युक्त चतुरंगणी सेना लेकर युद्ध क्षेत्र की ओर कूच करो। यह सुनकर दुर्योधन अति प्रसन्न हुआ व उसने शीघ्र ही नगर में रणभेरी बजवा दी। उसकी सेना राजमंदिर पुर की ओर बढ़ चली। उधर जरासंध का दूत द्वारिका पहुँच गया व उसने यहां यादवों, भोज, पांडवों व विद्याधरों से युक्त श्रीकृष्ण की सभा में प्रवेश कर कहा कि आप लोग जरासंध से इतने भयभीत क्यों हैं? आपको जाकर उन्हें नमस्कार करना उचित है। जरासंध को आपके यहां छिपे होने की बात मालूम चल गई है। वह युद्ध हेतु निकलने वाला है। दूत के यह वचन सुनकर सभा में उपस्थित सभी ने एक स्वर से उस दूत से कहा कि हम सभी युद्ध हेतु उत्कंठित हैं। यह कहकर दूत को विदा कर दिया। यद्यपि युद्ध के समाचार से सभी को अप्रसन्नता होती है; परन्तु अकारण-युद्ध आरंभ होता देखकर नारद खुशी से नाच उठा और सीधे शत्रु विनाशक नारायण श्रीकृष्ण को जरासंध के क्रोधान्ध होकर उसके युद्ध अभियान का हाल कह सुनाया। नारद के यह वचन सुनकर श्रीकृष्ण नेमिप्रभु के समीप चले गये व उन्होंने उनसे भविष्य में होने वाले युद्ध के संबंध में प्रश्न किया। किन्तु इन्द्रों से सेवित नेमिनाथ ने कोई उत्तर न देकर केवल स्मित हास्य किया। प्रभु की इस मंद मुस्कान को श्रीकृष्ण ने अपनी निश्चित विजय का सूचक समझा व तत्काल सेनाओं को युद्ध हेतु तैयार होने का आदेश दे दिया। जरासंध के दूत के चले जाने पर विमल, अमल व शार्दूल नाम के निपुण मंत्रियों ने राजा समुद्रविजय से कहा संक्षिप्त जैन महाभारत - 119
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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