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________________ उधर विजयार्ध पर्वत पर कला रूपी गुणों से प्रद्युम्न वृद्धि को प्राप्त होने लगा। विद्याधर पुत्र प्रद्युम्न ने शीघ्र ही आकाशगामिनी विद्या के साथ विद्याधरों की सभी विद्याओं को सीख लिया। यौवन को प्राप्त होते ही वह सभी अस्त्र-शस्त्र विद्याओं में भी कुशल हो गये। मन्मथ, मदन, काम, कामदेव व मनोभाव आदि प्रद्युम्न के सार्थक नाम थे। वे कामदेव पद के धारी थे। उसने कालसंवर के 500 पुत्रों को पराजित करने वाले सिंहरथ को जीतकर कालसंवर के आगे डाल दिया। इस घटना से खुश होकर कालसंवर ने प्रद्युम्न को युवराज पद से विभूषित किया। इस घटना से कालसंवर के 500 पुत्र नाराज हो गये तथा वे प्रद्युम्न के नाश का उपाय सोचने लगे। एक बार वे उसे सिद्धायतन के गोपुर ले गये व द्वेष भाव से उसे गोपुर के अग्रभाग पर चढ़ा दिया। प्रद्युम्न वहां के निवासी देव से विद्याओं का खजाना व मुकुट लेकर वापिस आ गये। यह देखकर वे 500 भाई आश्चर्य चकित रह गये। फिर उन्होंने एक बार बड़े वेग से प्रद्युम्न को महाकाल नामक गुफा में घुसा दिया। जहां से वह अनेक अस्त्र-शस्त्र लेकर बाहर आ गया। फिर उन भाइयों ने प्रद्युम्न को नागगुहा में घुसा दिया। जहां से वह पादपीठ, नागशैया, वीणा, आसन आदि लेकर सुरिक्षत बाहर आ गया। फिर उन्होंने प्रद्युम्न को एक वापिका में धकेल दिया। वहां से भी वह मकर चिन्ह की ध्वजा लेकर सुरक्षित वापिस आ गया। एक अन्य उपाय के रूप में उन भाइयों ने प्रद्युम्न को अग्नि कुंड में प्रवेश करने को कहा, किन्तु वहां से भी वह अग्नि से शुद्ध दो वस्त्र ले आया फिर उन्होंने उससे मेघाकृति पर्वत में प्रवेश करने को कहा; जहां से वह कर्ण-कुंडल लेकर वापिस आ गया। इस प्रकार उन 500 पुत्रों ने प्रद्युम्न को मारने की और भी अनेक चेष्टायें की, पर वे सफल नहीं हुए। उन्होंने उसे पांडुक वन में प्रवेश कराया, कापिथ्य वन में प्रवेश कराया, वाल्मीकि वन तथा शूकर वन में भी प्रवेश कराया, शराव पर्वत पर चढ़ाया। परन्तु प्रद्युम्न इन स्थानों से भी मुकुट, अमृतमयी माला, विद्यामय हाथी, कवच, मुद्रिका, कंठावरण संक्षिप्त जैन महाभारत - 107
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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